मीडिया द्वारा जल संरक्षण जागरूकता अभियान
जब भी मीडिया के भूमिका
की बात की जाती है तो तीन प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की जाती है। सूचना देना, शिक्षा देना और मनोरंजन करना। (to inform, to educate and to
entertain) साफ है कि लोगों सही सूचना देकर जागरूक बनाना और नए नए
रिसर्च और ज्ञान से लोगों को शिक्षित करना ही मीडिया का प्रमुख कार्य है। वह उन
लोगों तक सूचनाएं पहुंचाता है जिनके पास तक जानकारी नहीं होती। इसके लिए वह अलग
अलग तरह के मीडिया का इस्तेमाल करता है चाहे सबसे पुराना प्रिंट मीडिया हो,
बाद में आया आडियो और विजुअल मीडिया हो या फिर सबसे नया न्यू मीडिया
हो।
हर पीढ़ी अगली पीढ़ी
को विरासत में काफी कुछ देकर जाती है। इस विरासत में होता है ज्ञान, विज्ञान, धन और प्राकृतिक संसाधन। लेकिन आजकल हम लोग
जिस तेजी से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं
बड़ा सवाल है कि हम आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जाएंगे। बड़े खतरे हैं आने वाली
पीढ़ी के पास हो सकता है पीने लिए पानी न हो, खाने के लिए
अनाज कम पड़ जाए सांस लेने के लिए हवा भी न हो। जैसे जैसे धरती पर आबादी का बोझ
बढ़ता जा रहा है, हवा, पानी, जमीन की उपलब्धता कम होती जा रही है। प्रकृति से मिलने वाले हर तरह के
संसाधनों का तेजी से दोहन जारी है। दुनिया संकट से जूझ रही है। पहाड़ लगातार पिघल
रहे हैं। जंगल काटे जा रहे हैं। नदियों में पानी घट रहा है। खेतों को पर्याप्त
पानी नहीं नहीं मिल रहा है। हर साल हजारों लोग पानी के अभाव में दम तोड़ रहे हैं।
ऐसे तमाम खतरों के प्रति लोगों को जागरूक करने में मीडिया की बड़ी भूमिका हो सकती
है। लोगों को लगातार जागरूक कर हम एक सुंदर दुनिया बना सकते हैं। सुंदर लाल
बहुगुणा, अनुपम मिश्र और भारत डोगरा जैसे कुछ नाम जो
पर्यावरण पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं से सीख ली जा सकती है। अभी इस कड़ी और
भी नए नाम जोड़े जा सकते हैं।
जागरूकता
अभियान - समाज पत्रकारों अब नए शब्द में कहें तो मीडिया
वालों की ओर बड़े सम्मान भरी नजर से देखता है। उनसे सवाल भी पूछता और समाधान की
उम्मीद भी रखता है। एक अच्छे मीडिया कर्मी का काम सिर्फ सवाल खड़े करने का ही नहीं
बल्कि सवालों का समाधान ढूंढने में भी उसकी भूमिका होनी चाहिए।
घर
से करें शुरूआत - अब सवाल उठता है कि पत्रकार कैसे अपनी
भूमिका तय करे। धरती को बचाने में और लोगों के सामने नजीर खड़े करने में पत्रकारों
की कई तरह से भूमिका हो सकती है। पहली भूमिका तो व्यक्तिगत तौर पर होगी। यानी घर
से निकलने और घर वापस आने तक बिजली बचाने, ग्लोबल
वार्मिंग से खतरों से आगाह करने और हरियाली को बचाने रखने की कोशिश में लगे रहना। यानी
शुरूआत खुद से करनी होगी। आज पत्रकारिता में स्पेशलाइजेशन का दौर है। हर पत्रकार
किसी न किसी विषय में ज्यादा जानकारी रखता है। कोई राजनीति, कोई
अपराध, कोई खेल, कोई बिजनेस, कोई फिल्म टीवी का जानकार है। पर्यावरण भी बहुत बड़ा विषय हो सकता है। इस
क्षेत्र में कम पत्रकार हैं।
5.1
प्रिंट मीडिया का अभियान
आप अखबारों में लेख
लिखकर लोगों को जागरूक बना सकते हैं। अगर लेख नहीं छपता हो तो वेब पोर्टल बना सकते
हैं। छोटे छोटे पर्चे निकाल सकते हैं। अपने मुहल्ले में छोटे छोटे सेमिनार और
गोष्ठियां करवा सकते हैं। जागरूकता रैली और हरियाली लाने के अभियान से जुड़े दूसरे
कई तरह के आयोजनों के अगुवा या फिर हिस्सेदार बन सकते हैं। जब आप किसी प्रिंट
मीडिया में नौकरी कर रहे होते हैं तब आप खबरों के चयन में पर्यावरण से जुडी खबरों
के प्रमुखता दे सकते हैं।
दैनिक
भास्कर का अभियान
देश के सबसे बड़ा
अखबार समूह दैनिक भास्कर पिछले कई सालों से पानी बचाओ ( SAVE
WATER ) अभियान चला रहा है। इसके लिए अखबार के पहले पन्ने और अंदर
के पन्नों पर पानी के संकट पानी बचाने के तरीकों से जुड़ी खबरें खास तौर पर छापी
जाती हैं। लेकिन अखबार सिर्फ इतना ही नहीं करता। अपनी सामाजिक जिम्मेवारी को समझते
हुए देश के अलग अलग राज्यों के सैकड़ो शहरों में जागरूकता रैलियां, स्कूलों कालेजों में पानी बचाओ अभियान चलाता है। जल संरक्षण पर छोटी छोटी
पुस्तकें प्रकाशित करता है। पानी बचाने के लेकर कविताओं के माध्यम से मार्मिक अपील
की जाती है।
भास्कर समूह के जल बचाओ कल बचाओ
अभियान में सामाजिक संगठनों, कम्युनिटी रेडियो स्टेशन
की सहायता ली जा रही है। पूरे अभियान में इस बात को प्रमुखता से रखा गया है कि अगर
आज हमने पानी नहीं बचाया तो तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए ही लड़ा जाएगा।
सूखी
होली का संकल्प
इस साल दैनिक भास्कर
समूह ने देश में भर में लोगों रंग भरी होली की जगह सूखी होली खेलने की आह्वान
किया। सूखी होली यानी सिर्फ गुलाल से होली। कई शहरों में बड़ी संख्या में छात्र
छात्राओं ने सूखी होली यानी तिलक होली खेलने का संकल्प लिया।
डाउन
टू अर्थ
सेंटर फार साइंस एंड
एनवारनमेंट कई सालों से एक पाक्षिक पत्रिका निकालता है डाउन टू अर्थ। पत्रिका के
हर अंक में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर शोधपरक लेख और जागरूकता अभियानों की
खबरें होती हैं।
5.2
टीवी द्वारा अभियान
जब आप टीवी के लिए
खबरों को चयन कर रहे होते है तब भी ऐसी मजबूरियां आती हैं। बॉस बोलेगा बिकाउ खबरें
चाहिए। बेशक ऐसी खबरें चलेंगी लेकिन दिन भर चलने वाली खबरों में कुछ अच्छी खबरों
के लिए भी जगह खूब निकाली जा सकती है। दुनिया के कोने कोने से कई ऐसी खबरें आती
हैं जो धरती पर मंडरा रहे खतरे से जुडी होती है।
एनडीटीवी
का अभियान
अप्रैल 2008
में देश के प्रमुख टीवी चैनल समूह एनडीटीवी ने शुरू किया एक अनूठ
अभियान। एनडीटीवी टोयोटा ग्रीन अभियान में लगातार 24 घंटे का
कार्यक्रम चलाया गया। इसमें नामी गिरामी हस्तियों ने हिस्सा लिया। लोगों को
पर्यावरण के मुद्दों के बारे में जागरूक करने की एक कोशिश थी। अभियान के साथ नोबेल
पुरस्कार विजेता डॉ. आर.के. पचौरी, पर्यावरण मंत्री जयराम
रमेश और कई फिल्मी सितारे भी जुड़े थे।
आप खुद को एक पत्रकार के रूप में
ही नहीं बल्कि उससे कुछ आगे बढ़कर देखें। आजादी के आंदोलन के समय पत्रकारों
के सामने चुनौती थी देश को आजाद कराने की। तब पत्रकारिता एक मिशन थी। आज पत्रकारों
के सामने देश चुनौती नहीं है। पूरी दुनिया ही चुनौती है। चुनौती है इस धरती को
बचाए रखने की। जिससे कि आने वाले दिनों में पैदा होने वाले हमारा बच्चा, भाई, बहन, खुली हवा में सांस
ले सके उन्हें पीने को स्वक्ष जल मिल सके।
अब हम बात करेंगे कुछ ऐसे अभियानों को
जो अलग अलग मीडिया ने पर्यावरण को बचाने के लिए चलाए हैं। सबसे पहले बात करते हैं
प्रिंट मीडिया की। वैसे तो अखबारों में अच्छी और बुरी खबरें छपती रहती हैं। लेकिन
गर्मी आने के साथ ही हिंदुस्तान के अलग अलग राज्यों में पानी की भारी कमी हो जाती
है। दिल्ली से कुछ सौ किलोमीटर दूर चंबल में जाकर देखिए। कई साल वहां दर्जनों लोग
प्यास से तड़प कर मर चुके हैं। लेकिन जहां पानी है वहां लोग जमकर पानी बर्बाद करते
हैं।
केबल
आपरेटर एसोसिएशन का अभियान
देश में केबल टीवी का
बड़ा नेटवर्क है। आज मोबाइल फोन, टीवी, कंप्यूटर के माध्यम से भी बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रानिक कचरा निकल रहा है
जो गंगा, नहर और तालाब के पानी को दूषित कर रहा है जो लोगों
के लिए बड़ा हानिकारक है। लेकिन इन सबके के बीच केबल टीवी आपरेटरों का एक बड़ा
संगठन हर साल राष्ट्रीय स्तर पर चेतना यात्रा निकालता है। देश भर के केबल आपरेटरों
के संगठन को एक साथ जोड़ने की कोशिश के साथ ही चेतना यात्रा के अभियान में हर शहर
में लगाए जाते हैं पौधे। EVERY STEP IS A GREEN STEP इस
लक्ष्य के साथ देश के चेतना यात्रा देश के हर राज्य में पांच हजार किलोमीटर से
ज्यादा का सफर तय कर चुकी है।
5.3
न्यू मीडिया का अभियान
जंगल, जमीन, पानी, हवा के बचाने में
सिर्फ टीवी रेडियो की ही नहीं बल्कि न्यू मीडिया की भी भूमिका हो सकती है। कई
संगठन इसका बखूबी इस्तेमाल भी कर रहे हैं। वेबसाइटस पर वाटर पोर्टल चलाया जा रहा
है। http://hindi.indiawaterportal.org/ वेबसाइट पर
जाएं। यहां आपके पानी बचाने से जुड़ी हर कंपेन के बारे में विस्तार से
जानकारी मिलेगी। पानी बचाने से जुड़े कई नए शोध, देश भर के
अखबारों मे छपने वाली खबरों की क्लिपिंग यहां मौजूद है। ये पोर्टल पानी बचाने को
लेकर चलाए जा रहे हर तरह के प्रयासों की एक खिड़की है। वहीं मीडिया स्टडीज से
जुड़े छात्र अब जल संरक्षण को लेकर अपने कंपेन को आगे बढाने के लिए सोशल नेटवर्किंग
साइट्स का सहारा ले रहे हैं और उस पर अपने विचार लोगों तक शेयर कर रहे हैं।
5.4
कम्यूनिटी रेडियो का अभियान
हरियाणा के सिरसा का एक
उदाहरण लेते हैं। सिरसा के सामुदयिक रेडियो स्टेशन 90.4 एफएम पर कार्यक्रम हैलो सिरसा के
माध्यम से कई सालों से जल बचाओ अभियान चलाया जा रहा । सुरेंद्र कुमार ‘‘जल बचाओं अभियान” से पिछले 11 सालों
जुड़े हुए है। जल संरक्षण के लिए वे कई शहरों में जाकर छात्रों को जागरूक करते
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