शोध पत्र
विषय – प्राइम टाइम और जनसरोकार के मुद्दे ( एन.डी.टी.वी.
के विशेष सन्दर्भ में )
सारांश –
यह शोध प्राइम टाइम के मुद्दे को लेकर
किया गया और इससे यही स्पष्ट हुआ कि पिछले 15 वर्षों में मीडिया के स्वरूप में बहुत तेज बदलाव देखने को
मिला है. सूचना क्रांति एवं तकनीकी विस्तार के चलते मीडिया की पहुंच व्यापक हुई है.
इसके समानांतर भूमंडलीकरण, उदारीकरण एवं बाजारीकरण की प्रक्रिया भी तेज हुई है, जिससे मीडिया अछूता नहीं है. आज मीडिया का विस्तिरित पहलु
ही हमारे सामने आ रहा है, आज रोज नए-नए चैनल आ रहें हैं वहीँ नए पत्र-पत्रिकाएं भी
रोज मीडिया मंडी में उतर रही है. विस्तार के साथ चिंतनीय पहलू यह जुड़ा गया है कि यह सामाजिक
सरोकारों से दूर होता जा रहा है. भारत में मीडिया की भूमिका विकास एवं सामाजिक
मुद्दों से अलग हटकर हो ही नहीं सकती पर यहां मीडिया इसके विपरीत भूमिका में आ
चुका है. मीडिया की प्राथमिकताओं में अब शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, विस्थापन जैसे मुद्दे रह ही नहीं गए हैं. उत्पादक, उत्पाद और उपभोक्ता के इस दौर में खबरों को भी उत्पाद बना
दिया गया है, यानी
जो बिक सकेगा, वही
खबर है. इस बात में कोई दम नहीं है कि मीडिया का यह बदला हुआ स्वरूप ही लोगों को
स्वीकार है, क्योंकि
विकल्पों को खत्म करके पाठकों, दर्षकों एवं श्रोताओं को ऐसी खबरों को पढ़ने, देखने एवं सुनने के लिए बाध्य किया जा रहा है. उन्हें
सामाजिक मुद्दों से दूर किया जा रहा है. जनसरोकार के मुद्दे का राजनीतिकरण करना आज
मीडिया घरानों का फैशन हो गया है.
प्रस्तुत शोध भी इसी नतीजे पर आकर रुक गई क्या मीडिया भी जनता पे ही शासन
करेगा. या जनता को लोकतंत्र के मुख्यधारा से जोड़ेगा. इस स्थिति को एक प्रोग्राम के
तहत दर्शाना आवश्यक था और यही इस शोध का
सामाजिक सरोकार भी.
परिचय
यह शोध प्राइम टाइम में उठाए जाने मद्दों पर की गई है. यह
मुद्दे कितना जनसरोकार से ताल्लुक रखती है? चैनलों पर प्राइम टाइम में दिखाए जाने
वाले मुद्दे मत्वपूर्ण होते हैं. उसमें देश के तात्कालिक समस्याओं को उठाया जाता
है लेकिन मीडिया के बदलते परिवेश में मुद्दे भी बदले हैं. लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ
माने जाने वाला मीडिया जनसरोकारों से भटक गया है. मैंने अपने शोध में रैंडम सैंपल
पद्धति अपना कर खोजने की कोशिश की है कि मीडिया आज कहाँ तक अपने प्रोग्राम में
जनसरोकार की बात करता है. मीडिया के पास आए जनसरोकार के मुद्दों को लाकर कितना
भुना पाता है? जनसरोकार के मुद्दे को मीडिया किस तरह अपनाता है?
मीडिया किसी भी
प्रोग्राम के पीछे एक छोटा शोध करता है तभी जनता के सामने प्राइम टाइम के मुद्दों
को लाया जाता है, लेकिन आज प्राइम टाइम में आने वाले मुद्दे तात्कालिक राजनीति से
प्रभावित हो रहे हैं जो सामाधान नहीं विवाद को जन्म देती है और यह विवाद और छिछली
और धुंध हो जाती है क्योंकि अगले ही दिन मीडिया के पास नए मुद्दे आ जाते हैं. हमने
इस शोध में इसी समस्याओं को उठाने का काम किया है कि क्या वास्तव में मुद्दे
जनसरोकार से अलग होती जा रही है. यह शोध कई प्रकार के उद्देश्यों को लेकर भी चलती
है. यह शोध मीडिया के नैतिक जिम्मेवारी को भी उठाती है. मैं शोध निश्चित सीमा में
करने का काम किया है. सामाजिक विमर्श को कहाँ तक मीडिया दर्शक के सामने ला रहा है.
शोध उपयोगिता
यह शोध पूरी तरह
प्राइम टाइम जैसे व्यापक प्लेटफार्म की वर्तमान स्थिति को समझाने की कोशिश की है.
इससे हमें मीडिया के जनसरोकार के तरफ झुकाव का भी पता चलता है. प्राइम टाइम शो एक
बड़ा सामजिक विमर्श का प्लेटफॉर्म है और मीडिया कहाँ तक इसे उपयोग की है. यह सारी
जानकारी आगे आने वाले दिनों में प्राइम टाइम के प्रोग्राम का दशा और दिशा
निर्धारित करने में सक्षम होगा.
मीडिया के सामाजिक
दायित्व के अध्ययन में भी इसकी उयोगिता साबित होगी. लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका
और उसका यथार्थ दर्शन के एक पहलू को इस शोध द्वारा समझा जा सकता है. आज मीडिया में
उठाये जाने वाले मुद्दे कितना जन से सारोकार रखते हैं, इस शोध द्वारा वहां तक
पहुचने की कोशिश की गई है ताकि आगे जनता और मीडिया के वर्तमान स्थति को समझने में
एक पहलू को ध्यान में रखा जाए.
शोध उद्देश्य
I.
प्राइम
टाइम में आने वाले प्रोग्राम का जनसरोकार के तरफ झुकाव का अध्ययन करना
II.
राजनीति
सबंधित मुद्दों का सामजिक विमर्श पर प्रभाव का अध्ययन करना
III.
वर्तमान
की महत्वपूर्ण समाचारों, मुद्दों और प्राइम टाइम के मुद्दों का तुलनात्मक अध्ययन
करना
IV.
मीडिया
की नैतिक जिम्मेवारी और सामाजिक विमर्श के रिश्तों का अध्ययन करना.
V.
प्राइम
टाइम जैसे बड़े सामाजिक विमर्श प्लेटफॉर्म की उपयोगिता और वर्तमान स्थिति का अध्ययन
करना.
शोध परिसीमन
व्यापक विषय और लधु
शोध होने के कारण सिर्फ एन.डी.टी.वी. के प्राइम टाइम के कुछ शो को अध्ययन के
क्षेत्र में रखा गया है, क्योंकि व्यापक विषय था और संसाधन एवं समय नगण्य मात्र था
इसलिए अलग – अलग चैनलों के प्राइम टाइम को छोड़ दिया गया. शोध में उन चैनलों के
टीवी प्रोग्राम को नहीं लिया गया जो प्राइम टाइम के नाम पर सीधा न्यूज़ ही दिखाते
हैं जिसमें विमर्श नाममात्र भी नहीं होता. जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार के
द्वारा संचालित प्राइम टाइम को ही इस शोध में शामिल किया गया है. प्राइम टाइम के
साथ साथ उस दिन में घटने वाली घटनाओं के अध्ययन के लिए प्रिंट और वेब संस्करण के
समाचारपत्रों का भी शामिल किया गया है परन्तु सिर्फ उसमें प्रकाशित होने वाले
महत्वपूर्ण सामाचार को ही शोध में शामिल किया गया है.
शोध प्रविधि
प्रस्तुत शोध में
अंतर्वस्तु विश्लेषण पद्धति अपनाई गई है. मीडिया के क्षेत्र में शुद्ध परिणामों
एवं तर्कपूर्ण संरचना के लिए वैज्ञानिक विधि का होना महत्त्वपूर्ण माना जाता है
इसी श्रेणी में अंतर्वस्तु विश्लेषण पद्धति भी आती है. इस शोध में अंतर्वस्तु
पद्धति एक नए आयाम को सामने लाती है. इसकी सहायता हेतु तुलनात्मक अध्ययन को भी इस
शोध में शामिल किया हूँ. भौगालिक कारण एवं शोध सीमा भी अंतर्वस्तु विश्लेषण को ज्यादा
प्रमुखता प्रदान की है. वस्तुतः इस प्रकार के शोध में प्रश्नावली को भी सम्मलित
किया जाता है, लेकिन सिमित एवं एक प्रकार लोगों से घिरे रहने के कारण यह विविध
समस्याओं को सामने नहीं ला पाती अतः अंतर्वस्तु पद्धति को ही इसमें प्रमुखता डी गई
. इसका आधार रेंडम सैंपल में ली गई प्राइम टाइम के प्रोग्राम को लिया गया.
शोध प्रक्रिया
विषय का चयन मैं
अपने नियमित रोजमर्रा के विषय वास्तु को ध्यान में रख कर किया. मैं एन.डी.टी.वी.
के प्राइम टाइम प्रोग्राम का नियमित दर्शक हूँ अतः उसे ध्यान में रख कर मैंने इस
लघु शोध के विषय का चयन किया. विषय के चयन करने के बाद अंतर्वस्तु विश्लेषण हेतु
मैंने एन.डी.टी.वी. के आर्चिव से प्राइम टाइम में आने वाले एक महीने के रेंडमली 10
प्रोग्राम का चयन किया. मैं अपने शोध में विशेषतः एन.डी.टी.वी. के जाने – माने
वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार द्वारा होस्ट किया गया प्रोग्राम ही सम्मलित किया है.
यह प्रोग्राम मैंने 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर के बीच से चयन किया है जिसमें तात्कालिक घटनाओं
का विवरण कर सकूं. शोध की पद्धति के अंतर्गत ध्यान से पुरे दस प्रोग्राम को देखा
और इसमें उठाए गए मुद्दों को अपने अनुसार विश्लेषित किया. उनका तुलनात्मक अध्ययन
करने हेतु मैंने उस प्रोग्राम के अनुसार उस दिन एवं पुरे सप्ताह के ख़बरों पर भी
नजर बनाये रखा जिसमें प्रिंट माध्यम के अखबार दैनिक भास्कर (नागपुर संस्करण ) और
विभिन्न वेब पोर्टल का सहारा लिया, चूँकि प्राइम टाइम के मुद्दे उस सप्ताह या उस
दिन के ही प्रमुख ख़बरों को ही चयन करता है, इसलिए शोध हेतु इसका तुलनात्मक अध्ययन जरुरी
था. इसके बाद मैंने उन प्रोग्राम में उठाये गए मुद्दों को भी गौर से देखा और उसमें
आए समाधान के आधार पर विश्लेषण किया. ऐसे
आये समाधान सामान्यतः समाधान न होकर एक विमर्श को ही जन्म देती है. इसलिए हमने उस
जनसरोकार से भी जोड़ने का प्रयास किया जो हमारा आने वाला परिणाम है. प्रक्रिया जटिल
थी जिसमें समयाभाव के कारण ज्यादा विस्तृत विश्लेषण करना संभव नहीं था. इन तमाम
चुनौतियों के बावजूद शोध में इन प्रोग्राम का व्यवस्थित तरीके से अध्ययन करने का
प्रयास किया है. इस शोध के लिए मित्रों के साथ भी परिचर्चा की जो काफी ज्ञानवर्धक
था, जिससे मुझे अपने शोध के विविध उद्देश्य स्पष्ट हुए. व्यापक विषय को लघु शोध
में लेना यह काफी कठिन होता है फिर भी इसे आसान और क्रमबद्ध तरीके से विश्लेषित कर
उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया है.
शोध समस्या
शोध समस्या की शुरुवात
विषय चयन से ही शुरू हो जाती है. विषय चयन में लघु शोध हेतु छोटे से क्षेत्र को
लेना था लेकिन विषय उसके अनुरूप नहीं मिल रही थी इसके बावजूद मैंने अपने दैनिक
दिनचर्या से विषय को उठाया जिसे मैं कहीं न कहीं अनुभव कर रहा था. इसके बाद यह
समस्या और विकट हुई जब इसके लिए कंटेंट को संग्रह करने की बात आई क्योंकि मेरी
पद्धति अंतर्वस्तु विश्लेषण है इसलिए ली गई 1 महीने के प्रोग्राम को पुनः देख कर
विश्लेषण करना था जिसके लिए प्रोग्राम को उस के वेबसाइट से डाउनलोड करने की
प्रक्रिया में कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. विश्लेषण करने के बाद आकड़ों
को एक प्रक्रिया में लाने और विभिन्न प्रकार में दिखाने में भी कई सारी तकनिकी
समस्याओं का सामना करना पड़ा. वेब समाचारों के पुराने ख़बरों को भी पढ़ने और
तुलनात्मक अध्ययन में समस्या आई. इसके बावजूद भी मित्रों और स्वतः मनन ने सारे
समस्याओं का हल करते हुए शोध को एक समय सीमा अवधि में पूर्ण करने में सहयोग प्रदान
किया.
सैंपल का आकार
इसमें मैंने एन.डी.टी.वी. में दिखाए जाने वाले प्राइम टाइम
के दस प्रोग्राम को लिया है जो 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक के बीच के हैं. तथा
उसके साथ –साथ तुलनात्मक अध्ययन हेतु वेब समाचार पत्रों एवं दैनिक भास्कर में आये
समाचार पत्रों को भी सम्मलित किया हूँ.
आंकड़े एवं विश्लेषण
15 अक्टूबर से 15
सितम्बर के बीच एन.डी.टी.वी. में प्रसारित होने वाले प्राइम टाइम प्रोग्राम का
विवरण
|
||
एन.डी.टी.वी. के
मुद्दे.
|
मुद्दे का विषय सरोकार
|
मुद्दे के नतीजे
|
कोयला ब्लाक आवटन पर
मनमोहन दागदार?(पी.सी .पारख केस)
|
कोल घोटाला से सम्बंधित अर्थात जनसरोकार से
सबंधित
|
सिर्फ पि.सी.पारख के
इंटरव्यू से पूरी समस्या को राजनितिक परिपेक्ष्य में बदलाव
|
मदनी के बयान पर
प्राइम टाइम शो.. क्या कांग्रेस मुस्लिम को डरा के वोट ले रही है.
|
पूरी तरह से राजनितिक
मुद्दा
|
सिर्फ आरोप प्रत्यारोप
का दौर चला .... यहाँ भी मुद्दा कोई जन सरोकार की बात नहीं किया.
|
मोदी के बयान पर –
मंदिर से ज्यादा जरुरी है शौचालय
|
जनसरोकार से सबंधित
मुद्दे
|
समाधान में पक्ष और
विपक्ष एक दुसरे को अवसरवादी आरोप से दण्डित मात्र करती नजर आई.
|
राहुल गाँधी के
अध्यादेश पर बयान पर आधारित मुद्दा
|
राजनीति बयान बाजी पर
आधारित मुद्दा
|
प्रधानमंत्री और
विपक्ष के लिए जनता की नैतिक सपोर्ट का
लक्ष्य खोजती प्राइम टाइम
|
दागी नेताओं के
लिए अध्यादेश सवालों के घेरे में
|
राजनेता पर आधारित
मुद्दा
|
सही मांग पर भी
राजनितिक पार्टियों का दबाव.. और बहस
|
वि.के सिंह पर
राजनीतिकरण या राजनीति में वी. के सिंह
|
राजनीति सरोकार के
मुद्दे
|
पक्ष –विपक्ष का आरोप
प्रत्यरोप का दौर ... समाधान नहीं/
|
सोशल मीडिया कुछ
ज्यादा बेलगाम
|
जनसरोकार के मुद्दे
परन्तु राजनितिक बयान
|
सोशल मीडिया का
सेसरशिप पर सहमती परन्तु दंगे नहीं रुकेंगे... प्रश्न युक्त सामाधान
|
मोदी का आना आडवाणी
युग का अंत
|
राजनितिक अंतरद्वंद के
मुद्दे
|
विवादित तर्क- वितर्क
|
वंजारा और वाड्रा
आधारित केश का उल्लेख
|
राजनितिक मुद्दे
|
जनसरोकार से अलग
|
आम आदमी पार्टी का
दिल्ली दम
|
राजनितिक मुद्दे
|
राजनेता की बहस
|
उपरोक्त अंतर्वस्तु
में शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, विस्थापन जैसे जनसरोकार के मुद्दे का नाम तक नहीं लिया गया
जबकि ना जाने इस एक महीने के अंतराल में कितने मुद्दे देश के सामने आए . प्राइम
टाइम जैसी महत्त्वपूर्ण प्रोग्राम में जनसरोकार के मुद्दे को प्राइम नहीं माना
जाता है जबकि सारे प्रोग्राम के विश्लेषण करने के बाद तुलनात्मक अध्ययन किया गया
तो पाया गया की कई सारे ऐसे मुद्दे थे जो प्राइम टाइम के दिन और बीते सप्ताह
जनसरोकार को सामने लाते जिसे प्राइम टाइम ने अपने प्रोग्राम में स्थान नहीं दिया
और कुछ को दिया भी तो सिर्फ न्यूज़ माध्यम द्वारा सिर्फ सुचना दे दिया गया.
जैसे कई सारे मुद्दे :-
I.
फैलिन
तूफान :- इस सन्दर्भ में इलेक्ट्रानिक मीडिया ने सिर्फ वहां के सरकार और प्रसाशन
की बड़ाई की लेकिन इससे तबाह हुए उन गाँव के तरफ ध्यान नहीं दिया गया जिसमें सिर्फ
ओडिशा में 5 लाख लोग से ज्यादा प्रभावित थे. सिर्फ गंजाम जिले में 16000 लोग तूफान
से आये बाढ़ के कारण बेघर हो गए, दो दिन तक वहां कोई सरकारी सहायता नहीं पहुंची.
इससे सरकार के तरफ से तूफान के लिए बचाव
प्लान का पोल खुल जाता है. किस प्रकार सरकार ने सिर्फ मीडिया मैनेज की थी.
II.
इसी
बीच सीमा विवाद जैसी महत्त्वपूर्ण समस्या भी प्राइम टाइम का मुद्दा नहीं बन सकी.
प्राइम
टाइम में उठने वाले मुद्दे पर बहस के चरण :-
एन.डी.टी.वी. के
वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार मुद्दे के सारे पक्ष को रखते हैं. मुद्दे के सारे
सन्दर्भ अर्थात उसके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक पक्षों को सामने रखते हैं लेकिन
डिबेट में उसे मसालेदार अंदाज में परोसते हैं इसमें उस कार्यक्रम में बुलाए गए अथिति भी
ज्यादा राजनितिक पार्टियों से होते हैं ....
जैसे एक प्राइम
टाइम उदहारण से की रविश ने शौचालय चाहिए देवालय बाद में इसमें उसने प्रोग्राम के
परिचय में भारत की सारी सच्चाई को अपने तथ्यों के माध्यम से उजागर किया जैसे भारत
में 2001 के जनगणना अनुसार 55 % जनसख्या के पास शौचालय से वंचित रहना पड़ता है वहीँ
गुजरात 42% जनसँख्या खुले में शौच करती
है.सबसे ज्यादा बिहार में 76% और उत्तरप्रदेश में 66% लोग शौच बहार जाते हैं.
लेकिन इसी
प्रोग्राम में मोदी के बयान, जयराम नरेश के बयान और काशी राम के बयान को दिखा कर
पुरे प्रोग्राम को भड़काऊ बना दिया जाता है.
एन.डी.टी.वी. में आने
वाले अथितियों के नाम और क्षेत्र
|
|
नाम
|
सबंधित क्षेत्र
|
सबीर अली
|
नेता,(जे.डी.यू.)
|
जी.वि.एल. नरसिम्हा राव
|
नेता (बी.जे.पी.)
|
जगदम्बिका पाल
|
कांग्रेस प्रवक्ता
|
प्रकाश जावड़ेकर
|
भाजपा प्रवक्ता
|
संजय निरूपम
|
सांसद कांग्रेस
|
अभय कुमार दुबे
|
एडिटर (सी.एस.डी.एस.)
|
प्रशांत भूषण
|
एडवोकेट
|
ऐसे कई सारे विशिष्ट लोग
अथिति बन के आते हैं जो ज्यादातर राजनीति के क्षेत्र के होते हैं जो इस सामजिक
विमर्श को हित विमर्श बना देते हैं. आरोप – प्रत्यारोप में सारे प्रोग्राम दिशाहीन
बना देते हैं जिससे कोई भी सामाधान निकलना मुश्किल हो जाता है.
· प्राइम टाइम जैसे प्लेटफॉर्म की उपयोगिता – विश्लेषण एवं
तुलनात्मक अध्ययन के बाद पता चलता है कि इस सामाजिक विमर्श के प्रोग्राम में
जनसरोकार के मुद्दे भागीदारी निभाते तो यह कहीं ज्यादा जनता को जोड़ सकती थी और एक
बड़े वर्ग को फायदा पहुंचा सकती थी. परन्तु वर्तमान स्थिति के दयनीय और जनसरोकार से
भटकता नजर आ रहा है. आज यह जगह उपयोगिता के जगह बाजारु प्रवृति को अपना कर नैतिकता
को दाव पे लगा चूका है. जो इसकी बदनामी
मात्र ही है. यह सामाजिक विमर्श का एक अच्छा और उपयोगी प्लेटफॉर्म बन सकता है, जब
इससे जन के मुद्दे अर्थात शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, विस्थापन समस्या को उठाया जाए.
निष्कर्ष
क्या आम सरोकार की ख़बरें चैनलों से गायब हो रही हैं? ऐसे कई सवाल हैं जो आम लोगों से लेकर पत्रकार, बुद्विजीवियों के मन में अक्सर उठते रहते हैं. ऐसा इसलिये
है कि ख़बरिया चैनल अब आम लोगों से जुड़ी ख़बरों को ना दिखाकर राजनीतिक बयानबाजी
को मुद्दा बनाती है.
वस्तुतः पुरे शोध में निष्कर्ष में मीडिया के नैतिक जिम्मेवारी पर भी सवाल उठा
है क्योंकि पुरे महीने में राजनेता के बयान को दिखाकर मीडिया क्या दिखाना चाहती
है. मीडिया कितने हल्के से खबर को मुद्दे का अमली जमा पहना कर सिर्फ अपने टारगेट
ऑडीयंस को बहलाने का काम किया है. आज मीडिया ज्यादा विवादित मुद्दे को ही सामने
लाती है जो प्राइम टाइम के मुद्दे बनकर और सघन हो जाती है, लेकिन इसके बाद सिर्फ
आरोप के दौर में समाप्त की घोषणा हो जाती है.
इसमें ज्यदातर राजनेता अपनी नेतागिरी भी चमकाने के लिए आते हैं. विपक्ष और
पक्ष के बल पर मुद्दे का सामान्यीकरण करना यह कोई दिशा से न्यायसंगत नहीं लगता है.
दुर्भाग्य की बात यह है कि बिकाऊ खबरें भी इतनी सड़ी हुई है कि उसका वास्तविक खरीददार
कोई है भी या नहीं, पता करने की कोशिश नहीं की जा रही है. खबरों के उत्पादकों के पास इस बात का भी
तर्क है कि यदि उनकी ''बिकाऊ'' खबरों
में दम नहीं होता, तो चैनलों की टी.आर.पी. एवं अखबारों का रीडरशप कैसे बढ़ता?
क्या अब ख़बरिया चैनल अपना चोला बदलने की पहल करेंगे? क्या अब ख़बरिया चैनलों में जन सरोकार की ख़बरे देखने को
मिलेंगी?
क्या पत्रकारिता की गर्विली परम्परा का सुनहरा दौर वापस
आयेगा?
ऐसे कई सवालों का जवाब मिल पाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि जनससरोकार से जुड़ने के लिये ना सिर्फ ख़बरों को
सूंघने-समझने और पहचानने की क्षमता होनी चाहिए वरन टीआरपी जैसे
बाजारू दबाव को झ झेलने की ताकत भी. ईमानदारी से किसी न्यूज़ चैनल में
न्यूज़ देखने जाइए तो न्यूज़ के अलावा सब कुछ देखने को मिल जाएगा. आज के
मुख्यधारा के मीडिया का एक ही मंत्र है – ‘जो बिकेगा, वही टिकेगा’ .
सन्दर्भ:-
मीडिया और बाजारवाद – रामशरण जोशी
मीडिया मिशन से बाजारी कारण – रामशरण जोशी
|
No comments:
Post a Comment