डिजिटल सूचना एवं संचार माध्यमों का प्रभाव
वे दिन गए जब आप गरीब चित्र गुणवत्ता और अपर्याप्त केबल
कनेक्शन के कारण टीवी स्वागत में गड़बड़ी पीड़ित था। आज समय है जब आप को पकड़ने और
दिन डिजिटल तस्वीर की गुणवत्ता में धारावाहिकों और फिल्मों के लिए डिजिटल टीवी प्रसारण
तकनीक के साथ अपने पसंदीदा दिन देख सकते हैं। आज, वहाँ बाजार में आपूर्तिकर्ताओं कि
अपने डिजिटल प्रसारण प्रौद्योगिकी के साथ दर्शकों के लिए एक बेहतर टीवी देखने की
पेशकश की संख्या रहे हैं। डिजिटल टेलीविजन मूल रूप से डिजिटल संकेतों के माध्यम से
ऑडियो और वीडियो के संचरण है। इन संकेतों एनालॉग टीवी के अनुरूप संकेत करने के लिए
इसके विपरीत में प्राप्त कर रहे हैं। डिजिटल टेलीविजन चित्र प्रारूप प्रसारण
टेलीविजन प्रणाली है कि आकार और पहलू अनुपात के संयोजन कर रहे हैं के तहत परिभाषित
कर रहे हैं की एक किस्म का समर्थन करने में सक्षम है। टीवी प्रसारण के तरीके के एक
नंबर के माध्यम से डिजिटल प्रसारण के माध्यम से मदद की है। पुराना साधन के DTV के माध्यम से या एक एंटीना है, जो कई देशों में हवाई के रूप में भी
जाना जाता है और प्रौद्योगिकी डिजिटल स्थलीय टेलीविजन के रूप में जाना जाता है के
माध्यम से है।
इस स्थलीय
टेलीविजन एक बहुत बेहतर रंग और केबल कनेक्शन की तुलना में तस्वीर की गुणवत्ता
प्रदान करता है। घर टीवी के लिए सीधे इस DTV प्रौद्योगिकी आगे कि HDTV और SDTV दो श्रेणियों में विभाजित है। HDTV या उच्च परिभाषा टेलीविजन उच्च परिभाषा
वीडियो के संचरण के लिए प्रयोग किया जाता है। HDTV के स्वरूपों 1280 * 720 पिक्सल के एक प्रगतिशील स्कैन मोड
में या
1920 * 1080 पिक्सल
के interlaced के मोड में DTV पर प्रेषित किया जा सकता है। हालांकि, HDTV एनालॉग टीवी चैनलों पर नहीं किया जा
प्रेषित कर सकते हैं के रूप में यह चैनल क्षमता के मुद्दों है। मानक परिभाषा या
दूसरे हाथ पर टीवी SDTV
कई प्रारूपों है कि है कि विशेष रूप
से देश के प्रसारण में इस्तेमाल किया प्रौद्योगिकी के अनुसार विभिन्न पहलू अनुपात
के रूप ले सकता है।
टेलीविजन
प्रसारकों के अधिकांश SDTV डिजिटल सिग्नल HDTV के बजाय पसंद करते हैं क्योंकि नवीनतम सम्मेलन एक DTV चैनल के बैंडविड्थ के कई चैनलों में उपविभाजित
करने की अनुमति देता है। यह कई फ़ीड और उसी चैनल पर एक पूरी तरह से अलग टीवी
प्रोग्रामिंग की सुविधा। इसके अलावा, HDTV के केवल एक फ़ीड या एकाधिक कम संकल्प फ़ीड जो भी अक्सर काफी
परेशान प्रदान करने में सक्षम है। तो, अगर
आप अभी भी पुराने केबल कनेक्शन का उपयोग कर रहे हैं, यह उच्च समय के लिए एक डिजिटल
प्रसारण के लिए अपने टीवी कनेक्शन बदलाव है। आप ध्यान से जांच करने और गुण और
विभिन्न घर टीवी प्रदाता के लिए प्रत्यक्ष और फिर एक है कि अपनी आवश्यकताओं के लिए
सबसे उपयुक्त है का चयन करें द्वारा की पेशकश की सुविधाओं को समझ सकते हैं।
सूचना और संचार के
क्षेत्र में डिजिटल बदलाव की प्रक्रिया से वैश्विक लोकतंत्र पर मीडिया का प्रभाव
आज कल ज्यादा हो गया है. इस प्रौद्योगिक क्रांति की लोकतांत्रिक संभावनाएँ स्पष्ट
है. वेबसाइट, ब्लॉग,
टिवटर,
एसएमएस,
एमएमएस
और नए मीडिया के अन्य रूप ने वैश्विक राजनीति में नागरिकों के भाग लेने वादे को और
बढ़ा दिया है. सूचना-संचार के वैश्विक नेटवर्क लोकतांत्रिक विचार विमर्श के लिए
डिजिटल पब्लिक स्फीयर के लिए साधन मुहैया कराते हैं.
नई डिजिटल तकनीक लोकतांत्रिक प्रकियाओं
में मीडियाकर्मियों की भूमिका बदल रही है. इंटरनेट, मोबाइल
फोन और इसी तरह के अन्य साधनों ने खबरों के उत्पादन और सूचना के मुक्त प्रवाह में
दर्शकों को ज्यादा शक्ति दी है. खबरों के उत्पादन पर से पत्रकारों का एकाधिकार
समाप्त हो गया है. उदाहरण स्वरुप शौकिए ब्लॉगर खबरों का विवरण देते रहते हैं. इस
बीच जब दर्शकों के पास खबरों के विषय-वस्तु और उसे तैयार करने का ज्यादा विकल्प हो
तो संपादकों के पास एजेंडा सेट करने का अधिकार कम हो जाता है. पहले
मीडिया प्रोडूसर और पाठकों-दर्शकों के बीच ऊपर से नीचे का वर्गीकृत ढाँचा होता था. वर्तमान
में डिजिटल मीडिया क्षैतिज स्तर पर जुड़ाव के तहत काम करता है. इस
तरह से नई मीडिया ऑनलाइन या डिजिटल डेमोक्रेसी के लिए नींव का काम करती है. हालांकि
डिजिटल मीडिया और वैश्विक लोकतंत्र के बीच संबंध में सब कुछ खुशनुमा ही नहीं है.
एक बात पक्की है कि डिजिटल मीडिया दर्शकों को बांटता है. नई तकनीक मीडिया के के
प्रति व्यक्तवादी उपभोग का रुख रखती है. दर्शकों को बांटने से सामूहिक पब्लिक
स्फीयर का खंडन होता है जहाँ नागरिक, राजनेता
और सरकार वैश्विक मुद्दों को लेकर आपस मे संचार कर सकते हैं.
साथ ही नई तकनीक की सीमित पहुँच वैश्विक
डिजिटल वातावरण में लोगों की ज्यादातर भागेदारी में एक बाधा है. तथाकथित रूप से
डिजिटल डिवाइड मौजूद है:आधारभूत
ढॉचे, योग्यता और नई मीडिया
के इस्तेमाल की प्रेरणा में असमान अवसर. यह
असमानता वैश्विक राजनीति और आर्थिक विभेद में दिखाए देता है लेकिन यह महज धन के
मामले में ही नहीं बल्कि शिक्षा, नस्ल
और विशेष लैंगिक मामलों में भी सच है. वैश्विक मामलों में भागेदारी के इन असमान
अवसरों से लोकतंत्र खतरे में पड़ता है.
नई मीडिया के स्वामित्व में शक्ति संबंध
भी वैश्विक लोकतंत्र के लिए चुनौती खड़ी करते हैं. डिजिटल जन संचार एक शक्तिशाली
उद्योग की तरह काम करता है जिसमें केंद्रीकृत कारपोरेट स्वामित्व होता है. इस तरह
की स्थिति में जो ताकतवर लोग हैं उन्हें खबरों को तोड़ने-मरोड़ने का मौका मिल जाता
है और वह लोकतंत्र के खिलाफ काम कर सकता है. मीडिया का धंधा आम तौर पर सामाजिक और
मानवीय लक्ष्यों से आगे व्यावसायिक लक्ष्यों को रखता है.
नई डिजिटल मीडिया को भी इस कदर कमजोर
किया जा सकता है कि उसकी शैक्षणिक संभावनाओं की जगह मनोरंजन का पक्ष हावी हो जाए.
सेलिब्रिटी की निजी जिंदगियों और उनके स्कैंडल पर ध्यान केंद्रित करने से
मीडिया लोगों को राजनीति से निष्क्रिय बना सकती है और वैश्विक लोकतांत्रिक
प्रक्रिया से दर्शकों को दूर कर सकता है. हालांकि मास कल्चर में शैक्षणिक
संभावनाएँ हैं, चूँकि ज्यादातर लोग
पापुलर मीडिया के माध्यम से ही राजनीति को समझते हैं. इस
तरह वैश्विक लोकतंत्र पर मीडिया का प्रभाव विशेष तौर पर सांस्कृतिक विविधता और
सहिष्णुता के मामले में बढ़ाया जा सकता है.
नए मीडिया की वैश्विक गुणवत्ता डिजिटल
जन संचार के लिए वैधानिक रूप रेखा तैयार करने की राज्यों की क्षमता पर अंकुश लगा
सकता है. अधिकारवादी सरकार के लिए राज्यों का कमजोर होना लोकतांत्रिक रूप से
सकारत्मक बात हो सकती है. हालांकि
यह लोकहित में लोकतांत्रिक राज्यों के प्रभावशाली नियंत्रण को पाने से रोक भी सकता
है. असल में, इंटरनेट का
संचालन-प्रशासन मुख्यत नाम और नंबर देने के लिए होता है जो एक प्राइवेट एंजेसी ‘इंटरनेट
कॉरपोरेशन’के हाथों में है. इंटरनेट की
पहुँच वैश्विक स्तर तक समान पहुँच और उसे पारदर्शी बनाने के लिए सरकार,
एनजीओ
और डिजिटल कार्यकर्ताओं के सामूहिक प्रयास की जरुरत है.
इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए यह
जरुरी है नागरिकों को नई तरीक से मीडिया में साक्षरता की जरुरत है ताकि वे डिजिटल
संचार का इस्तेमाल इस रूप में कर सकेंगे कि वैश्विक लोकतंत्र बढ़े. मीडिया
के वातावरण में युवाओं को विशेष रूप से अनुभव प्राप्त करने की जरुरत है. उन्हें
ना सिर्फ मीडिया की विषय वस्तु को कैसे ग्रहण किया जाए इसमें शिक्षित करने की
जरुरत है बल्कि किस तरह से उसका उत्पादन और संचार करें इस बात का भी प्रशिक्षण
जरुरी है. साधन तक पहुँच के नए दर्शनशास्त्र को एक तरफ मूलभूत तकनीक प्रशिक्षण और
दूसरी ओर सामाजिक और राजनीतिक आलोचनात्मक विश्लेषण की जरुरत है. स्कूली
शिक्षक, विश्वविद्यालय के
व्याख्याता, माता-पिता,
राष्ट्रीय
और वैश्विक नीति निर्माता और मीडिया संस्थान जैसे विभिन्न कर्ताओं को सीख की इस
प्रक्रिया में भाग लेने की जरुरत है. इसका लक्ष्य युवा नागरिकों को सक्रिय
और मीडिया का चेतन उपभोक्ता बनाने की है. जिन
देशों में मीडिया व्यावसायिक रूप से संचालित होता है, जहाँ
विषय वस्तु आयातित मनोरंजन के उत्पादों पर पूरी तरह से निर्भर है,
जहाँ
पत्रकारिता राजनीतिक रूप से पूर्वाग्रह का शिकार है वहाँ पर इस तरह की शिक्षा
विशेष रूप से जरुरी है.
अगले कुछ महीनों में आपके टीवी पर
तस्वीरें एकदम साफ दिखने लगेंगी। ऐसा डिजिटल प्रसारण के कारण होगा । दरअसलए मौजूदा
एनालॉग सिस्टम को डिजिटल करने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले दिनों मंजूरी देकर देश
भर में केबल टीवी प्रसारण को आधुनिक बनाने की पहल की है। यह एक ऐसा अध्यादेश हैए
जिससे टीवी सिग्नल को डिजिटल बनाना सभी केबल आपरेटरों के लिए अनिवायर् हो जाएगा।
अगले साल मार्च से सभी टीवी उपभोक्ताओं के घर में सेटटॉप बॉक्स लग जाएगा। तब लोगों
की टीवी पर खराब पिक्चर आने की शिकायत नहीं रहेगी। डिजिटल प्रसारण आज भी होता है
लेकिन एनालॉग की तुलना में बहुत कम टेलीविजन सेटों पर। अभी देश में टीवी प्रसारण
की तकनीक पुरानी है और यह एनालॉग सिस्टम पर काम करती है। मौजूदा व्यवस्था में टीवी
तक प्रसारण कइर् माध्यमों से पहुंचता है। जब देश में सिर्फ दूरदर्शन था तो इसका
प्रसारण छत पर लगे एंटीना के जरिए टीवी तक पहुंचता था। अब पुराने एंटीना तो घरों
पर दिखते भी नहीं हैं। इस समय करोड़ों घरों में केबल के माध्यम से प्रसारण पहुंच
रहा है। कइर् लोग केबल वालों से संतुष्ट न होने के कारण डीटीएच यानी डायरेक्ट टू
होम सविर्स का एंटीना लगा रहे हैंए तो कइर् लोग आइर्पीटीवी के माध्यम से टीवी चैनल
देख रहे हैं। टीवी प्रसारण के लिए ब्राडबैंड की सेवाएं भी आगे आइर् हैं। मगर इसका
प्रयोग करने वाले कम ही हैं। डीटीएच पर कइर् लोगों का भरोसा जरूर बढ़ा है। यही वजह
है कि दिल्ली और इससे सटे गुड़गांवए नोएडाए गाजियाबाद और फरीदाबाद में छतों पर
कइर् कंपनियों के छतरीनुमा डीटीएच एंटीना देखे जा सकते हैं। बावजूद इसके केवल टीवी
सस्ता होने से ज्यादातर घरों में टीवी चैनल इसी माध्यम से देखे जा रहे हैं।
भारत में प्रसारण की प्रक्रिया थोड़ी
जटिल है। यह पेचीदा इसलिए हैए क्योंकि हमारे टीवी तक तस्वीर सीधे नहीं पहुंचती।
केबल को ही लेंए तो यह तीन चरणों में काम करता है। पहले प्रसारणकर्ता अपने सिग्नल
जारी कर सैटेलाइट को भेजते हैंए फिर मल्टी सिस्टम आपरेटर इन सिग्नलों को डाउनलोड
कर स्थानीय केबल आपरेटरों को भेजते हैं। इसके बाद इलाके के केबल वाले तारों का जाल
बिछा कर बेशुमार घरों तक टीवी प्रसारण पहुंचाते हैं। यह ऐसी प्रक्रिया हैए जब प्रसारण
कइर् बार साफ नहीं होता। यह वजह है कि अक्सर केबल वालों और टीवी उपभोक्ताओं में
विवाद होता है। डायरेक्ट टू होम सेवा में बीच की प्रक्रिया नहीं है। यानी घर की छत
पर लगा छतरीनुमा एंटिना मल्टी सिस्टम आपरेटर से हो रहे प्रसारण को डाउनलोड कर लेता
है। इसके बाद टीवी के पास रखा सेटटॉप बॉक्स सभी सिग्नलों को ग्रहण कर लेता है।
इससे न केवल साफ.सथुरी तस्वीर मिलती है बल्कि आप दुनिया भर में तमाम चैनल देख सकते
हैं। जाहिर है इस सिस्टम में तारों का वैसा जाल नहींए जैसा कि केबल वाले
गली.मुहल्लों में खंबों से लेकर घरों तक फैलाए रखते हैं। यह तारों से मुक्त डिजिटल
टेक्नालॉजी है। यों आइर्पीटीवी भी डिजिटल है मगर ब्राडबैंड के इस्तेमाल के कारण
तारों से युक्त है। डिजिटल प्रसारण के दौरान क्या केबल वाले तारों का संजाल कुछ कम
करेंगेए यह अभी साफ नहीं है। फिलहाल सरकार ने जो अध्यादेश जारी किया हैए उसके
मुताबिक जिस घर में भी केबल टीवी चल रहा हैए वह मार्च तक डिजिटल हो जाएगा। जबकि
देश के बाकी हिस्सों में मार्च 2014 तक
केबल वालों को डिजिटल प्रसारण करना होगा। यानी एनालॉग सिस्टम को डिजिटल में बदलना
होगा। केबल टीवी वाले अभी से बताने लगे हैं कि घरों में सेटटॉप बॉक्स लगेगा। यह
करीब एक हजार रुपए का होगा। यह अनिवायर्ता उपभोक्ताओं के लिए आर्थिक बोझ है। लेकिन
इतना तय है कि इसके लगने के बाद लोगों को अपने टेलीविजन या एलसीडी पर वैसी ही साफ
और चमकदार तस्वीरें दिखाइर् देंगीए जैसी किसी एलसीडी के शोरूम में दिखाइ देती हैं।
सच्चाइ यह है कि केबल आपरेटर बरसों से चांदी काट रहे हैं। खराब तस्वीरें आने पर भी
या केबल न चलने पर भी जहां वे उपभोक्ताओं से पूरे महीने का शुल्क वसूलते हैं वहीं
वे अपनी पूरी कमाइ का ब्योरा देने से इंकार करते हैं। इसमें एनालॉग सिस्टम सरकार
का मददगार साबित हुआ है। मौजूदा व्यवस्था में सरकार यह पता नहीं लगा सकती कि कितने
घरों में केबल कनेक्शन है वास्तविक संख्या उपभोक्ताओं की पर्ची काटने वाले केबल
आपरेटरों के एजेंट को ही मालूम होती है। प्रसारण की ज्यादातर मलाइर् ये लोग ही चाट
जाते हैं। यही वजह है कि ट्राइ ने केबल प्रसारण के पूरे राजस्व को तीन हिस्सों में
बांटना अनिवायर् किया था। इसमें तय किया गया था कि कमाइ का 45
फीसद
प्रसारणकर्ता कोए 30 फीसद
मल्टी सिस्टम आपरेटर्स को और 25 फीसद
केबल वालों को मिले। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पिछले साल एक रिपोर्ट में कहा गया कि देश
भर में टीवी उपभोक्ताओं से केबल वाले 19 हजार
करोड़ से भी ज्यादा शुल्क वसूलते हैं। लेकिन इस रकम का 20 फीसद
हिस्सा ही कमाइर् के रूप में घोषित करते हैं। साफ है कि केबल संचालक मोटी कमाइर्
कर रहे हैं और इसी पर सरकार की नजर है। भारत में केबल आपरेटरों ने न केवल सरकार को
बल्कि प्रसारकों को भी झांसा दे रखा है। कइर् केबल आपरेटर खुद को मिले विज्ञापन भी
प्रसारित हो रहे चैनलों के नीचे पट्टी पर चलाते रहते हैं। ग्राहकी शुल्क देने का
तो सवाल ही नहीं है। हालांकि कुछ स्थानीय चैनल तो ग्राहकी शुल्क पर ही निभ्रर हैं।
ये ऐसे चैनल हैंए जिन्हें विज्ञापन नहीं मिलते। नतीजा केबल वालों के मोहताज रहते
हैं। बड़े चैनल केबल आपरेटरों के भरोसे नहीं हैं। क्योंकि उनका सारा खर्च खुद को
मिलने वाले भारी.भरकम विज्ञापन शुल्क से चल जाता है। मगर वे आज तक नहीं जान पाए कि
वस्तुत: कितने घरों में उनका चैनल देखा जा रहा है। लेकिन डिजिटल सिस्टम शुरू होने
पर कइ चीजें साफ हो जाएंगी। तब केबल आपरेटर कुछ भी नहीं छिपा पाएंगे। उन्हें कमाई
का एक हिस्सा प्रसारणकर्ता को और दूसरा हिस्सा मल्टीसिस्टम आपरेटर को देना ही
पड़ेगा। मौजूदा व्यवस्था में केबल आपरेटर सौ से डेढ़ सौ चैनल ही घरों तक पहुंचा
सकते हैं। टीवी सेट भी इतने सक्षम नहीं कि सौ से ज्यादा चैनल प्रसारित कर सकें।
जबकि अभी छह सौ चैनल के सिग्नल मौजूद हैं। कोई नया चैनल आता हैए तो वे केबल
आपरेटरों पर निभ्रर रहते हैं। दर्शकों तक उस चैनल को पहुंचाने के लिए केबल आपरेटर
मुहॅ मांगे पैसे मांगते हैं। दर्शकों की पसंद के चैनल के बीच अपने चैनल को रखने और
उसे दिखाए जाने के लिए प्रसारक को खासी कवायद करनी पड़ती है। लेकिन जब डिजिटल
प्रसारण शुरू हो जाएगाए तो प्रसारणकर्ता केबल मालिकों की मनमानी के शिकार नहीं
होंगे। तब यही केबल वाले चार-पांच सौ चैनल दिखाने के लिए मजबूर होंगे। डिजिटल
प्रसारण के लिए सेटटॉप बॉक्स लगाना अनिवार्य है। प्रसारण में क्रांति इसी से आने
वाली है। इसका सबसे बड़ा फायदा तो टीवी दर्शकों को होने वाला है। वे अब ज्यादा से
ज्यादा देशी.विदेशी चैनल देख सकेंगे। वहीं डिजिटल साउंड के साथ एकदम साफ तस्वीर
टीवी, एलसीडी देखने के आनंद
को दुगुना कर देगी। हालांकि इसके लिए उन्हें जेब जरूर ढीली करनी पड़ेगी। एक बार
सेटटॉप बॉक्स के लिए रुपए खर्च कराने के बाद केबल आपरेटर उनसे 20
से
30 फीसद ज्यादा शुल्क भी मांग
सकते हैं। जो भी हो इससे प्रसारणकर्ताए मल्टी सिस्टम आपरेटर और केबल संचालक फायदे
में ही रहेंगे। सबसे बड़ी बात यह कि प्रसारण तकनीक अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो
जाएगी।
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