vaibhav upadhyay

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meri soch or mere sbd se jo kuch bna wo meri khud ki abhivyakti hai....!!!!!

Tuesday, April 14, 2015

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था

  भारत जीडीपी के संदर्भ में वि‍श्‍व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है. यह अपने भौगोलि‍क आकार के संदर्भ में वि‍श्‍व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्‍या की दृष्‍टि‍ से दूसरा सबसे बड़ा देश है. हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधि‍त मुद्दों के बावजूद वि‍श्‍व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक के रूप में उभरा है.






भारतीय अर्थव्यवस्था को तीन भाग में बाँट सकते हैं-


इति‍हास  
  ऐति‍हासि‍क रूप से भारत एक बहुत वि‍कसि‍त आर्थिक व्‍यवस्‍था थी जि‍सके वि‍श्‍व के अन्‍य भागों के साथ मजबूत व्‍यापारि‍क संबंध थे . औपनि‍वेशि‍क युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रि‍टि‍श भारत से सस्‍ती दरों पर कच्‍ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्‍य मूल्‍य से कहीं अधि‍क उच्‍चतर कीमत पर बेचा जाता था जि‍सके परि‍णामस्‍वरूप स्रोतों का द्धि‍मार्गी ह्रास होता था . इस अवधि‍ के दौरान वि‍श्‍व की आय में भारत का हि‍स्‍सा 1700 ए डी के 22.3 प्रति‍शत से गि‍रकर 1952 में 3.8 प्रति‍शत रह गया . 1947 में भारत के स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात अर्थव्‍यवस्‍था की पुननि‍र्माण प्रक्रि‍या प्रारंभ हुई . इस उद्देश्‍य से वि‍भि‍न्‍न नीति‍यॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्‍यम से कार्यान्‍वि‍त की गयी.
  1991 में भारत सरकार ने महत्‍वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्‍तुत कि‍ए जो इस दृष्‍टि‍ से वृहद प्रयास थे जि‍नमें वि‍देश व्‍यापार उदारीकरण, वि‍त्तीय उदारीकरण, कर सुधार और वि‍देशी नि‍वेश के प्रति‍ आग्रह शामि‍ल था. इन उपायों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को गति‍ देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बहुत आगे नि‍कल आई है. सकल स्‍वदेशी उत्‍पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्‍टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रति‍शत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रति‍शत के रूप में बढ़ गयी.



 


v कृषि
  कृषि‍ भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ है जो न केवल इसलि‍ए कि‍ इससे देश की अधि‍कांश जनसंख्‍या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्‍कि‍ इसलि‍ए भी भारत की आधी से भी अधि‍क आबादी प्रत्‍यक्ष रूप से जीवि‍का के लि‍ए कृषि‍ पर नि‍र्भर है .
  वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपायों के द्वारा कृषि‍ उत्‍पादन और उत्‍पादकता में वृद्धि‍ हुई, जि‍सके फलस्‍वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्‍त हुई . कृषि‍ में वृद्धि‍ ने अन्‍य क्षेत्रों में भी अधि‍कतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जि‍सके फलस्‍वरूप सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में और अधि‍कांश जनसंख्‍या तक लाभ पहुँचे . वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मि‍लि‍यन टन का एक रि‍कार्ड खाद्य उत्‍पादन हुआ, जि‍समें सर्वकालीन उच्‍चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्‍पादन हुआ . कृषि‍ क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रति‍शत प्रदान करता है .
 



उद्योग
  औद्योगि‍क क्षेत्र भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लि‍ए महत्‍वपूर्ण है जोकि‍ वि‍भि‍न्‍न सामाजि‍क, आर्थिक उद्देश्‍यों की पूर्ति के लि‍ए आवश्‍यक है जैसे कि‍ ऋण के बोझ को कम करना, वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्‍मनि‍र्भर वि‍तरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परि‍दृय को वैवि‍ध्‍यपूर्ण और आधुनि‍क बनाना, क्षेत्रीय वि‍कास का संर्वद्धन, गरीबी उन्‍मूलन, लोगों के जीवन स्‍तर को उठाना आदि‍ हैं.
  स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात भारत सरकार देश में औद्योगि‍कीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्‍टि‍ से वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपाय करती रही है. इस दि‍शा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगि‍क नीति‍ संकल्‍प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारि‍त हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारि‍त हुआ. 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रति‍बंधों को हटाना, पहले सार्वजनि‍क क्षेत्रों के लि‍ए आरक्षि‍त, नि‍जी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनि‍श्‍चि‍त मुद्रा वि‍नि‍मय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि‍ के द्वारा महत्‍वपूर्ण नीति‍गत परि‍वर्तन लाए. इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्‍यधि‍क अपेक्षि‍त तीव्रता प्रदान की.आज औद्योगि‍क क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रति‍शत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रति‍शत अंशदान करता है .
 



सेवाऍं
  आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि‍ आधरि‍त अर्थव्‍यवस्‍था से ज्ञान आधारि‍ त अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में परि‍वर्तन को देख रहा है . आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रति‍शत ( 1991-92 के 44 प्रति‍शत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक ति‍हाई है और भारत के कुल नि‍र्यातों का एक ति‍हाई है .
  भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्‍लेखनीय वैश्‍वि‍क ब्रांड पहचान प्राप्‍त की है जि‍सके लि‍ए नि‍म्‍नतर लागत, कुशल, शि‍क्षि‍त और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्‍ति‍ के एक बड़े पुल की उपलब्‍धता को श्रेय दि‍या जाना चाहि‍ए . अन्‍य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्‍यवसाय प्रोसि‍स आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परि‍वहन, कई व्‍यावसायि‍क सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधि‍त सेवाऍं और वि‍त्तीय सेवाऍं शामि‍ल हैं.
 


बाहय क्षेत्र
  1991 से पहले भारत सरकार ने वि‍देश व्‍यापार और वि‍देशी नि‍वेशों पर प्रति‍बंधों के माध्‍यम से वैश्‍वि‍क प्रति‍योगि‍ता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति‍ अपनाई थी .
  उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परि‍वर्तित हो गया . वि‍देश व्‍यापार उदार और टैरि‍फ एतर बनाया गया . वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश सहि‍त वि‍देशी संस्‍थागत नि‍वेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लि‍ए जा रहे हैं . वि‍त्‍तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है . रूपए मूल्‍य अन्‍य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्‍ति‍यों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं.
  आज भारत में 20 बि‍लि‍यन अमरीकी डालर (2010 - 11) का वि‍देशी  प्रत्‍यक्ष नि‍वेश हो रहा है . देश की वि‍देशी मुद्रा आरक्षि‍त (फारेक्‍स) 28 अक्‍टूबर, 2011 को 320 बि‍लि‍यन अ.डालर है . ( 31.5.1991 के 1.2 बि‍लि‍यन अ.डालर की तुलना में ) 
  भारत माल के सर्वोच्‍च 20 नि‍र्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्‍च 10 सेवा नि‍र्यातकों में से एक है .
पंचवर्षीय योजना
  महत्‍वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्‍त करने की दृष्‍टि‍ से भारत सरकार द्वारा कई क्रमबद्ध पंचवर्षीय योजना लाई जिससे  गरीबी उन्‍मूलन और रोजगार उत्‍पन्‍न हो .
  यह पंचवर्षीय योजना भारत की अर्थ्वावस्था की मूलभूत योजना होती है जिसे योजना आयोग द्वारा निर्धारित किया जाता है.
  पंचवर्षीय योजना में आगे के पांच साल के सारे योजना को समाहित किया जाता है और अगले साल के किसी एक आर्थिक समस्या को लक्ष्य के रूप में लिया जाता है.
  आइये आगे भारत वर्ष में लाई गई सारी पंचवर्षीय योजना पे संक्षिप्त नजर डालते हैं.
पंचवर्षीय योजना की शुरुवात  
  आज़ादी के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने समाजवादी आर्थिक मॉडल को आगे बढ़ाया. जवाहरलाल नेहरू ने अनेक महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय लिए जिनमें पंचवर्षीय योजना की शुरुआत भी थी. 
  सन् 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना की नींव डाली गई और योजना आयोग का गठन किया. 
  अधिकतर पंचवर्षीय योजनाओं में किसी न किसी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई. 
  पंचवर्षीय योजना के काल खंड
  पहली योजना -(1951-1956)
  दूसरी योजना -(1956-1961)
  तीसरी योजना -(1961-1966)
  चौथी योजना -(1969-1974)
  पांचवीं योजना -(1974-1979)
  छठी योजना -(1980-1985)
  सातवीं योजना -(1985-1989)
  आठवीं योजना -(1992-1997)
  नौवीं योजना -(1997-2002)
  दसवीं योजना -(2002-2007)
  ग्यारहवीं योजना -(2007-2012)
  बारहवीं योजना (2012-2017)
Ø पहली योजना -(1951-1956)
  नेहरू ने 8 दिसंबर, 1951 को संसद में पहली पंचवर्षीय योजना को पेश किया था और उन्होंने उस समय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लक्ष्य 2.1 फ़ीसदी निर्धारित किया था. 
  इस परियोजना में कृषि क्षेत्र पर विशेष ज़ोर दिया गया क्योंकि उस दौरान खाद्यान्न की कमी गंभीर चिंता का विषय थी.
  इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान पाँच इस्पात संयंत्रों की नींव रखी गई. 
  हैरेड-डोमर विकास मॉडल पर आधारित था.
Ø दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961)
  दूसरी पंचवर्षीय योजना में उद्योगों को प्राथमिकता दी गई लेकिन तीसरे में फिर कृषि को तरजीह दी गई. 
  इस योजना में अखिल भारतीय खादी एवं बोर्ड की स्थापना हुई.
  दूसरी योजना विधि में राउरकेला, भिलाई, दुर्गापुर इस्पात संयत्रों की स्थापना हुई.
  इस योजना को भौतिकवादी योजना के नाम से जाना जाता है.
  पी. सी. महालबोनिस द्वारा विकसित चार क्षेत्रीय मॉडल पर आधारित था . 
Ø तीसरी योजना -(1961-1966)
  ये योजना की मुख्य प्राथमिकता आत्मनिर्भरता और स्वतः स्फूर्ति अर्थव्यवस्था थी.
  ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्कूलों में शुरू किए गए.
   राज्य बिजली बोर्डों और राज्य के माध्यमिक शिक्षा बोर्डों का गठन किया गया. 
  तीसरी योजना में आर्थिक वृद्धि दर 2.72 प्रतिशत वार्षिक रही.
  जान सैंडी, सुखमय चक्रवर्ती व प्रदर्शन योजना मॉडल पे आधारित
Ø चौथी योजना -(1969-1974)
  इस योजना की प्राथमिकता स्थिरता के साथ विकासथा.
  इस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. इंदिरा गांधी सरकार ने 14 राष्ट्रीयकृत प्रमुख भारतीय बैंकों और भारत उन्नत कृषि में हरित क्रांति के दरवाजे खोले.
  एकाधिकार एवं प्रबंधक व्यवहार आयोग की स्थापना हुई.
  1972-1973 से रोजगार गारेंटी की शुरुवात हुई.
  एलन एस मान्ने और अशोक रूद्र मॉडल पे आधारित था
Ø पांचवीं योजना -(1974-1979)
  इस योजना की प्राथमिकता रोजगार, गरीबी उन्मूलन, और आर्थिक आत्मनिर्भरता पर रखी गई थी.
  योजना भी कृषि उत्पादन और बचाव में आत्मनिर्भरता पर जोर दिया.
  काम के बदले आनाज इसी कार्यक्रम 1977 से शुरू हुआ.
  1978 में नव निर्वाचित मोरारजी देसाई की सरकार योजना को अस्वीकार कर दिया.
  इस योजना के मॉडल में 66 क्षेत्र लिए गए.
अनवरत योजना ....
  जनता पार्टी के अल्पकालिक शासन काल में छठी पंचवर्षीय (1978-83) का प्रारूप तैयार किया गया और इस चक्रीय अथवा अनवरत योजना नाम दिया गया परन्तु फिर इंदिरा गाँधी की सरकार सत्ता में आई और इसे बंद कर नई छठी योजना -(1980-1985) लागू की गई.
  इसे दो वर्ष की योजना में ही कर दिया गया .
Ø छठी योजना -(1980-1985)
  यह एक महत्वपूर्ण योजना के रूप में उभरी.
  इस के दौरान सबसे प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय आय में वृद्धि, प्रौद्योगिकी का आधुनिकरण, गरीबी एवं बेरोजगारी में लगातार कमी करना एवं परिवार नियोजन के जरिये जनसंख्या नियंत्रण था.
  इस योजना के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम 2 अक्टूबर 1980 से सुरु किया गया.
  परिवार नियोजन पर जोर दिया गया.
  ग्रामीण क्षेत्र में महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम सितम्बर 1982 से प्रभावी किया गया 
Ø सातवीं योजना -(1985-1989)
  इस योजना का मुख्य उद्देश्य संवृधि, आधुनिकरण, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय पर बल देना.
  इसी दौरान इंदिरा आवास योजना 1985-86 में लागू हुआ था.
  जवाहर रोजगार योजना अप्रैल 1989 से शुरू हुआ था.
  नेहरु रोजगार योजना अक्टूबर 1989 से शुरू हुआ था.


Ø योजना अवकाश ..
  दो एकवर्षीय योजनाओं की अवधि 1990-92 के बीच थी.
  भारत के पास विदेशी मुद्रा केवल 1 बिलियन डालर होने से विदेशी मुद्रा भंडार का संकट उत्पन्न दबाव में भारत ने अपने समाजवादी अर्थव्यवस्था के ढांचे में सुधार करते हुए इसे मुक्त बाजार में परिवर्तित किया.
  इसी दौरान अर्थव्यवस्था में उदारीकरण और निजीकरण की जुलाई 1991 शुरुवात हुई.
  इसे लाने का श्रेय वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को जाता है जो उस समय वित्त मंत्री थे.
Ø आठवीं योजना -(1992-1997)
  इस योजना का मुख्य उद्देश्य मानव संसाधन का विकास रहा था.
  यह योजना उससमय के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के उदारीकरण के मॉडल पर आधारित था.
  इसी दौरान 1 जनवरी 1995 को भारत विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य बना.
  इस योजना के दौरान परिचालित दो योजनाएं थी
    प्रधनमंत्री योजना 15 अगस्त 1993 से शुरू
    रोजगार बीमा योजना 2 अक्तूबर 1993 से शरू .
Ø नौवीं योजना -(1997-2002)
  नौवीं योजना देश की स्वाधीनता के 50वें वर्ष शुरू होने वाली योजना थी
  इस योजना का मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय तह समानता के साथ आर्थिक विकास था.
  इसके लिए जीवन स्तर, रोजगार सृजन, आत्मनिर्भरता एवं क्षेत्रीय संतुलन जैसे चार क्षेत्रों पर विशेष बल दिया गया
  इस योजना विधि में स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना 1 दिसम्बर 1997 में शुरू हुई.
  यह योजना आयोग का दृष्टिपत्र पर आधारित था.
Ø दसवीं योजना -(2002-2007)
  यह योजना उपलब्धियों से भरा रहा .
  इस योजना में आर्थिक संवृधि दर का लक्ष्य 8 प्रतिशत था और उपलब्धि 7.8 प्रतिशत प्रतिवर्ष रहा.
  दसवीं पंचवर्षीय योजना में पहली बार राज्यों के साथ विचार- विमर्श कर राज्यवार विकास दर निर्धारित की गयी.
  दसवीं योजना के लक्ष्य थे-
  निर्धनता अनुपात को वर्ष 200तक कम करके 20 प्रतिशत और वर्ष 2012 तक कम करके 10 प्रतिशत तक लाना.
  वर्ष 2007 तक प्राथमिक शिक्षा की पहुँच को सर्वव्यापी बनाना.
  वर्ष 2001 और 2011 के बीच जनसंख्या की दसवर्षीय वृद्धि दर को 16.2 प्रतिशत तक कम करना.
  साक्षरता में वृद्धि कर इसे वर्ष 2007 तक 72 प्रतिशत और वर्ष 2012 तक 80 प्रतिशत करना.
Ø ग्यारहवीं योजना -(2007-2012)
  ग्यारहवीं योजना में समावेशी विकास की नीतियाँ अपनाई गई थी.
  इस समावेशी विकास में सभी क्षेत्रों पे ध्यान दिया गया
  जैसे आय और गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिलाओं और बच्चों के लिए, बुनियादी सुविधाओं, पर्यावरण 
  इसके आलावा तीव्र आर्थिक विकास हेतु विद्युत् शक्ति पे ध्यान दिया गया.
  राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण से भी विद्युतीकरण का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार शुरू किया गया.
Ø बारहवीं योजना (2012-17)
  इस योजना का प्रमुख उद्देश्य तेजी से, सतत और अधिक समावेशी विकास है.
  बारहवीं पंच वर्षीय योजना के दौरान आयुष विभाग की प्राथमिकताएं दी गई है.
   स्वास्थ्य सेवाओं में आयुष के प्रयोग को बढ़ाया गया.
  12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश को बढ़ाकर 1,000 अरब डॉलर तक पहुंचाना 
  इस योजना के अंतर्गत हर क्षेत्र को मुख्य उद्देश्य में सम्मलित किया गया है.
शिक्षा के क्षेत्र में भी ध्यान दिया गया है, उच्च शिक्षा हेतु कई योजनाओं का निर्माण हो हो रहा है.

पिछले 11 पंचवर्षीय योजना के  सकल राष्ट्रीय उत्पादका  लक्ष्य एवं उपलब्धि
योजना
लक्ष्य
प्रतिशत प्रतिवर्ष उपलब्धि
पहली योजना
2.1
3.60
दूसरी योजना
4.5
4.21
तीसरी योजना
5.6
2.72
चौथी योजना
5.7
2.05
पांचवीं योजना
4.4
4.83
छठी योजना
5.2
5.54
सातवीं योजना
5.0
6.02
आठवीं योजना
5.6
6.68
नौवी योजना
6.5
5.4
दसवीं योजना
8.0
ग्यारहवीं योजना


















सकारात्मक निष्कर्ष....
  भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में पंचवर्षीय योजनाएं अहम भूमिका में है. यह अर्थव्यवस्था की खामियों को ध्यान में रखकर सारी योजनाओं का प्रबंधन करती है. हम सारी पिछली योजनाओं पे गौर करें तो तीसरी और चौथी योजनाओं को छोड़ हर योजना में हमारा सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि हुई है. हमारा भारत देश बहुसांस्कृतिक, बहुभाषिक एवं ज्यादा जनसंख्या होने के बावजूद आज 10 बड़ी अर्थव्यवस्था की गिनती में आता है.
  जहाँ इस देश की 40 वर्ष पहले कोई वैश्विक छवि नहीं थी वहीँ आज यह आई टी सेंटर के नाम से भी जाना जाता है.
  
  वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है. भारत को आज़ाद हुए 66 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है. औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है. आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है. विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है. आईटी सॅक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है.
कुछ अर्थव्यवस्था के विकास से दूर वर्ग ..... 
  इस विकास में हमेशा वो छुट जाता है जिसकी इसे जरूरत है. आज भी हमारा देश गरीबी का दंश झेल रहा है.
  विकास के आंकड़ो से दूर भारत की आधी से अधिक आबादी आधे पेट खा कर रहने को मजबूर है
  देश में गरीबी के पैमाने से आंकड़ों के साथ खिलावाड़ गरीबों के मुंह पर घोर तमाचा है. पहले निरर्थक ढंग से गरीबी की परिभाषा तय करना और फिर दिन-रात संघर्ष कर अपना पेट पालने वाले लोगों के लिए चंद रुपयों का मापदंड तय करना, यह गरीबी का मजाक नहीं तो और क्‍या है.
  शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जीवन अंग से आज भी बहुत आबादी जुडी नहीं है.
  आये दिन भ्रष्टाचार की ख़बरें इस विकास की फूहड़ता को प्रदर्शित करती है.
  जो असली विकास इस लोकतंत्र शासन प्रणाली में होनी चाहिए उससे यह कोशों दूर है.
  वर्तमान में भी रुपयों का अमुल्यन और गिरता सेंसेक्स योजना के असफलता को दर्शाता है जिसे सरकार राजनितिक आरोप-प्रत्यरोप के बीच दबाती चली जाती है .
  यह विकास और भारतवासी के बीच विडंबना ही है.
सन्दर्भ ....
  भारत 2013
  क्रानिकल अप्रैल 2009

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