vaibhav upadhyay

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allahabad, uttar pradesh, India
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Saturday, September 29, 2012

फिर आ गया है, समानांतर सिनेमा


हंमेशा से ही सिनेमा को दो प्रकार की श्रेणियोमें रखा जा रहा है!....एक श्रेणी है 'कमर्सियल ' फिल्मों की ; और दूसरी श्रेणी 'आर्ट' फिल्मों की है! कमर्सियल फिल्मों के अंतर्गत आने वाली फिल्में महज मनोरंजन को लक्ष में ले कर बनाई जाती है! यह फिल्में कॉमेडी, रोमांस और रहस्य, भूत-प्रेत इत्यादि विषयों के इर्द-गिर्द घुमती है, लेकिन फिल्म की कहानी पर ज्यादा ध्यान नहिं दिया जाता!..कैमेरे का जादू खूब दिखाया जाता है! लगभग सभी फिल्में बहुत बडे बजेट की होती है!...जबकि आर्ट फिल्में एज्युकेशन, सामाजिक समस्या, किसी खास वर्ग की मुश्किलें, असाध्य बीमारियों की जानकारी तथा असाध्य बीमारियों से पीडित व्यक्ति के प्रति सहानुभूति को केन्द्र में रख कर बनाई जाती है!..कहानी को बिना-तोडे मरोडे वास्तविक ढंग से पेश किया जाता है!...वास्तविकता पर तो खास ध्यान दिया जाता है!...कम बजेट में यह फिल्में बन कर तैयार होती है और लोग इन्हे खूब पसंद भी करतें है!

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लेकिन कुछ् वर्षों से कमर्सियल फिमें ही रुपहले पर्दे पर धूम मचाती रही!... इनके बडे बजेट के होने का भी जोर-शोर से प्रचार करने में फिल्म निर्माताओं ने कोई कसर नहिं छोडी!...कुछ फिल्में दर्शकों को अपनी तर्फ खिंचने में कामयाब रही लेकिन बडी संख्या में धाराशयी याने कि 'फ्लॉप' भी हो गई!...2009 में बिल्लू बार्बर,ब्ल्यू, कुर्बान, कमबख्त इश्क, दिल बोले हडिप्पा, 8 *10  तस्वीर, चांदनी चौक टु चाइना, अलादीन और दे दनादन इ. फिल्में, जो करोडों की लागत से बनी हुई थी....दर्शकों की पसंद ना बन सकी!

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जब कि कम बजेट  की सोनी तारपोरवाला की 'लिटिल जिजोऊ' दर्श्कों की पसंद पर खरी उतरी!...इरफान खान की 'थैंक्स मां, अनुराग कश्यप की देव डी और गुलाल, ग्रेसी सिंह की मुख्य भूमिका वाली आसिमा, नसीरुद्दीन शाह की बोलो राम और करण जौहर की वेक अप सिड दर्शकों द्वारा पबुत पसंद की गई!....इन फिल्मों ने बिज्नेस भी अच्छा किया!

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इस वर्ष के अंत में  रिलीज हुई अमिताभ बच्चन की 'पा' फिल्म को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया!...इस फिल्म में वह अभिषेक बच्चन के बेटे की भूमिका में नजर आ रहे है!..फिल्म सिर्फ 16 करोड के बजेट में बनाई गई है!...इस फिल्म में बच्चा प्रोजोरिया नामक बीमारी से पीडित है...ऐसे में उसके माता-पिता के रिश्तॉ पर कैसा असर पड्ता है...इसी कहानी पर फिल्म बनाई गई है!

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कुछ दशकों पहले  ग्रामीण समाज को केन्द्र में रख कर बनाई गई फिल्में आर्ट सिनेमा का मुख्य आकर्षण थी; लेकिन अब  समय के बदलने के साथ साथ शहर के निवासियों की समस्याएं और उनके सुख-दुःख भी आर्ट फिल्मों का आकर्षण बने हुए है!...लगता है कि अब बे-सिर पैर की कहानी वाली वाली फिल्में दर्शक पसंद नहीं करेगे...भले ही वे कितने ही बडे बजेट को ले कर बनाई गई हो!

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